लाओत्से कहता है, “बुद्धिमान व्यक्ति बहुत बातें नहीं जानता है;
जो बहुत बातें जानता है वह बुद्धिमान नहीं है।’बहुत के जानने का आग्रह ही इसलिए होता है कि तुम एक से चूक रहे हो। एक को पा लोगे, तृप्त हो जाओगे; जानने की प्यास ही बुझ जाएगी। इसलिए बहुत बातें जानते हो, जानने की चेष्टा करते हो, और जान लें, और जान लें, क्योंकि प्यास मिटती नहीं। तुम्हारा ज्ञान, जिसको तुम ज्ञान कहते हो, कितना ही पीए चले जाओ, कंठ सूखता ही चला जाता है; प्यास मिटती नहीं। प्यास नहीं मिटती तो मन होता है और पीयो, और पीयो। शायद पर्याप्तनहीं पी रहे हैं। इसलिए आदमी ज्ञान को इकट्ठा करता चला जाता है। वह ज्ञान का सागर हो सकता है, लेकिन प्यास न मिटेगी। क्योंकि सागर से कहीं प्यास मिटी है? प्यास के लिए तो छोटा सा एक का झरना चाहिए। बड़े से बड़ा सागर भी प्यास न बुझा सकेगा। वह बहुत खारा है। तुम सब जान लो, सागर जैसा तुम्हारा ज्ञान हो जाए विस्तीर्ण, फिर भी तुम प्यासे रहोगे। तृप्ति तो उसके झरने से मिटती है, तृप्ति तो उसके झरने से होती है; वह एक का झरना है। उस एक को ही उपनिषद ब्रह्म कहते हैं, उस एक को ही लाओत्से ताओ कहता है। उस एक को तुम जो भी नाम देना चाहो दे दो, परमात्मा कहो, निर्वाण कहो, सत्य कहो, पर वह एक है। और वह एक तुमसे दूर नहीं; तुम्हारे भीतर है। असल में, जो स्वयं को जान लेता वह सब जान लेता। क्योंकि स्वयं सबका सार-संचित है; स्वयं के भीतर सारा ब्रह्मांड छिपा है छोटे से पिंड में। अनंत आकाश समाया है तुम्हारे छोटे से हृदय में। वह बीज-रूप है, यह विराट वृक्ष-रूप है। बीज को जिसने जान लिया उसने पूरे वृक्ष को जान लिया। क्योंकि बीज में सारा ब्लू-प्रिंट है, पूरे वृक्ष की एक-एक पत्ती छिपी है। अभी प्रकट नहीं हुई है, छिपी है। तुम्हारे भीतर सारा ब्रह्मांड छिपा है। इसलिए उपनिषद कहते हैं, तत्वमसि। वह तुम ही हो। बुद्धिमान एक को जान लेता है; निर्बुद्धि अनेक के पीछे दौड़ता, भटकता और पागल हो जाता है। अनेक के पीछे दौड़ोगे तो पागल हो ही जाओगे। बहुत सी नावों में एक साथयात्रा कैसे करोगे? बहुत दिशाओं में कैसे चलोगे? एक की खोज वाला धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शांत होकर विमुक्त हो जाता है; अनेक की खोज वाला धीरे-धीरे अशांत होते-होते विक्षिप्त हो जाता है।विक्षिप्तता और विमुक्तता ये दो छोर हैं। मध्य की तो पागलपन मिटता जाएगा। शांत हो जाओगे, प्रफुल्लित हो जाओगे, खिलजाओगे। एक मेधा प्रकट होगी, एक प्रतिभा का प्रकाश आने लगेगा। जैसे-जैसे एक की तरफ बढ़ोगे वैसे-वैसे संगठित होने लगोगे। *जैसे-जैसे एक के पास पहुंचोगे वैसे-वैसे भीड़ छंटने लगेगी;* तुम भी एक होने लगोगे। क्योंकि समान ही समान को जान सकता है। जब तुम एक हो जाओगे तभी तुम एक को जान पाओगे। जब तुम अनेक हो जाओगे तभी तुम अनेक के साथ संबंध बना पाओगे। अनेकता विक्षिप्तता में ले जाएगी। एकता विमुक्ति है।
#-ताओ उपनिषद- (भाग -6)
प्रवचन -126
प्रवचन -126
ओशो
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